मन्नत

मिसेज शर्मा परेशान थी. सुबह से शाम होने को आई लेकिन उनकी परेशानी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी. आज नवरातों की अष्टमी थी. उन्होंने इस साल इक्कीस कन्याएं जिमाने की मन्नत मानी थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद कन्याएं इकट्ठी नहीं जुट पा रही थी. कुछ साल पहले तक तो कन्याएं खुद ही कॉलोनी के घरों में और आस-पास की सोसाइटीयों में घूमती फिरती थी. अब न जाने क्या हो गया था?

मिसेज शर्मा पूरी कोशिश कर रही थी कि उनके मुंह से कोई गलत बात न निकले. लेकिन जब मिस्टर शर्मा पास की ‘अप्सरा सोसाइटी’ से भी अकेले मुंह लटकाए लौट आये तो उनके मुंह से न चाहते हुए भी निकल गया, “क्या हो गया इन मुइयों को? पहले घर-घर छिटकती थी. आज ढूंढें न मिल रही...’

मिस्टर शर्मा घबरा कर बोले, “राम राम! ऐसा न कहो. नवरातों में लडकियां मां का रूप हो जाती है. अरे आज के दिन तो हर घर में कन्या जीमती है न. इसलिए इक्कीस कन्याएं एक साथ आनी मुश्किल हो जाती है. दो तो अपने ही घर में है और पांच-सात तो अपने पड़ोस में है ही. मैंने दो-तीन घरों में और कन्याओं को देखा था. सबको बोल दिया आने को. आ जायेंगी शाम होने से पहले. तुम बस तैयारी पूरी रखो.”

मिस्टर शर्मा की बात सुन मिसेज शर्मा को थोड़ी राहत मिली और वह थोडा सहज होकर बोली, “इसी को कहते है देवी माँ बिना परीक्षा लिए कोई मन्नत पूरी नहीं होने देती. और साल देखिये, मन्नत न होती थी तो समय से कन्या जिमा लेते थे. इस साल मन्नत है तो सुबह से घर के सारे ‘मरद मानुष’ भूखे बैठे है और अभी तक कन्याओं के दर्शन भी ना हुए है.”

“हो जाएगा... हो जाएगा... चिंता न करो...” मिस्टर शर्मा ने दिलासा देते हुए कहा.

कुछ वक़्त और बीता. दिया बाती की बेला आने को थी. मिसेज शर्मा घबराकर बाहर दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. तभी उन्हें एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले हंसती हुई करीब १०-११ कन्याएं आती दिखाई दी. छोटी छोटी बच्चियां माता का रूप धरे अपनी चुनरियाँ संभालती हुई खिलखिलाती चली आ रही थी. मिसेज शर्मा हुलसते हुए अन्दर गयी और बहु को आवाज़ लगायी, “सुनीता, आसन लगाओ. माताएं आ रही है.” और फिर उसी तेज़ी से वापिस बाहर गयीं ताकि कन्याओं को अन्दर ला सके.

लेकिन इससे पहले कि कन्याएं मिसेज शर्मा के घर पहुँचती, पड़ोस के घर से मिश्राजी का बेटा निकला और सभी कन्याओं को एक-एक चॉकलेट पकड़ाता हुआ अन्दर ले गया. लडकियां उछलती कूदती उसके साथ चली गयी.

मिसेज शर्मा सर पकड़ के बैठ गयी. अचानक से उनका गला भर आया और वह सोचने लगीं, “माता कितनी परीक्षा लोगी? भरी घर पोतियाँ है. अब बस पोते की मन्नत पूरी करवा दो... और कुछ न चाहिए, माता...”


[चित्र: गूगल से साभार]
© स्नेहा राहुल चौधरी

Comments

Popular posts from this blog

UNBUDGETED INNOCENCE by Gauarv Sharma

Reading Experience: Dasharajna

एक प्यार ऐसा भी...