हॉरर बोले तो हॉरर...
जब से मार्वल ने मार्वल
सिनेमेटिक यूनिवर्स और डीसी ने डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स शुरू किया है, तब से
एडवेंचर सिनेमा पसंद करने वाले सिनेप्रेमियों की बहार आ गयी है. वफादार प्रशंसकों
का ऑनलाइन तथा ऑफलाइन घमासान इन्हें फायदा ही पहुंचा रहा है. हालांकि मुद्दे की बात
ये भी है कि ये दोनों कम्पनियां दर्शकों को बेस्ट देने की जी तोड़ कोशिश भी कर रही
हैं.
अब इनके बीच आते है मियां
यूनिवर्सल. अब भई, जब ये दोनों अपना अपना यूनिवर्स “लॉन्च” कर चुके है, तो
यूनिवर्सल जो कि पहले से ही “यूनिवर्सल” है, वो क्यों पीछे रहे? ना जी, अपना
यूनिवर्स लॉन्च करने में कोई बुराई नहीं. लेकिन ये क्या बात हुई कि अभ्यास मैच
खेला भी नहीं और सीधा फाइनल में कूद पड़े...?
कमोबेश कुछ ऐसा ही,
यूनिवर्सल ने “डार्क यूनिवर्स” के साथ किया. अपनी पिछली फिल्मों का रिबूट तैयार कर
रिलीज़ करने का एजेंडा बनाये यूनिवर्सल के दिमाग में यही दही जमी थी हुज़ूर, जब जनता
बिरयानी पसंद करती हो तो क्या फर्क पड़ता है आज की बनी हो या पिछले इतवार की. लेकिन
जनाब, वो ये भूल गए बासी दाल में चाहे जितना भी हींग का तड़का लगा दो, वह रहेगी
बासी ही. बासी व्यंजन में ताज़ा तड़का लगाने से जायका नहीं बदलता अलबत्ता पुरानी
रेसिपी से नए व्यंजन तैयार करके तारीफें ज़रूर लूटी जाती है. ठीक उसी तरह,
“कांसेप्ट” भले पुराना हो लेकिन, नए तरीके से तैयार की गयी कहानी ही दर्शकों को
भाती है.
“ड्रैकुला अनटोल्ड” में
मुंह की खाने के बावजूद, यूनिवर्सल ने अपने तौर तरीकों में नयापन लाना ज़रूरी नहीं
समझा. नतीजा, “मम्मी रीबूट” के रूप में सबके सामने है.
मिशन इम्पॉसिबल सीरीज की
फिल्मों में, 1000 cc की सुपरबाइक को 200 किमी प्रतिघंटे की रफ़्तार से दौड़ाते टॉम क्रूज
के लहराते बालों की कसम, मेरी इच्छा हुई कि मैं यूनिवर्सल के “डार्क यूनिवर्स” को
पानी पी पीकर कोसू...
“मम्मी रीबूट” की आह्मनेट, “होटल
ट्रांसिल्वेनिया” के तोंदू “मम्मी” से भी ज्यादा हास्यास्पद और “सेट” के रूप में
टॉम क्रूज उसकी अकड़ी हुई कमर से भी ज्यादा दयनीय लगते हैं. अपने हाथों से अपने पैर
पर कुल्हाड़ी मारने में यूनिवर्सल ने कोई कसर उठा नहीं रखी. डॉ. हाइड को भी बस
खानापूर्ति के लिए डाल दिया. और इतना सब कर के यूनिवर्सल ने सोच लिया कि टॉम क्रूज
का “क्रूजी” अंदाज़ बॉक्स ऑफिस को अपना दीवाना बना देगा. लेकिन लंगड़े घोड़े को कन्धों
पर उठा कर दौड़ जाना कोई बच्चों का खेल नहीं. नतीजा वही हुआ जो होना था.
बॉक्स ऑफिस को काबू में करने की कोशिश करता "यूनिवर्सल"
[चित्र साभार: यूनिवर्सल पिक्चर्स]
सच्चाई तो ये है कि
इम्होटेप के आगे आह्मनेट कहीं नहीं टिकती. न बैकग्राउंड स्टोरी के मामले में, न
एक्शन के मामले में, और डराने की बात तो खैर जाने ही दे तो बेहतर है. डराने का “यूनिवर्सल
कांसेप्ट” सिर्फ जबरिया जबड़े चीरने और धुंधलके में टशन देकर चलने तक ही सीमित है. अजी,
इससे बेहतर तो अपने रामसे ब्रदर्स की भूतिया हवेली थी. इसके आगे बात बढे तो ब्रैंडन
फ्रेज़र की बहादुरी और जॉन हन्नाह की कॉमिक टाइमिंग, दोनों काम टॉम क्रूज से अकेले
करवाने के यूनिवर्सल आइडिये की गहमागहमी में ये बात नज़रअंदाज़ हो गयी कि किफायती
में इतिहास रच पाना बहुत मुश्किल काम है. रेचेल वेइस्ज़ को कॉपी करने की कोशिश करती
एनाबेल ने तो सबसे ज्यादा निराश किया. यकीन नहीं हुआ कि ये “एनाबेल” वाली ही
एनाबेल है...!
“एनाबेल 2” आ चुकी है. ऐसे
में “एनाबेल” से जुडी सारी बातें याद आ गयी. ज़ल्दी ही देखने का प्लान है. बस डर है
“एनाबेल 2” “दी मम्मी रीबूट” की तरह निराश न करे...
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